भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सपना / ऋषभ देव शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह= }} <Poem> मेरे पिता ने देखा था ...)
(कोई अंतर नहीं)

01:13, 22 अप्रैल 2009 का अवतरण



मेरे पिता ने

देखा था

एक सपना

कि हवाएँ आज़ाद होंगी ....

और वे हो गईं.


फिर मैंने

देखा एक सपना

कि

महक बसेगी

मेरी साँसों में ....

और मेरे नथुने

भिड़ गए आपस में

मुझे ही कुरुक्षेत्र बनाकर


अब मेरा बेटा

देख रहा है एक सपना

कि हज़ार गुलाब फिर चटखेंगे

पर उसे क्या मालूम कि

अब की बार

गुलाबों में

महक नहीं होगी !