"युद्धजीवी प्रभु के नाम / ऋषभ देव शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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ओ नृशंस प्रभु! | ओ नृशंस प्रभु! | ||
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क्यों किया तूने ऐसा | क्यों किया तूने ऐसा | ||
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कि अपनी ही संतान को | कि अपनी ही संतान को | ||
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बलिपशु बना डाला | बलिपशु बना डाला | ||
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अपनी अधिकार-लिप्सा के हेतु ? | अपनी अधिकार-लिप्सा के हेतु ? | ||
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क्यों अपना शासन बनाए रखने को | क्यों अपना शासन बनाए रखने को | ||
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क्षमा कर दिया तूने | क्षमा कर दिया तूने | ||
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सहोदर के हत्यारे काइन को ? | सहोदर के हत्यारे काइन को ? | ||
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क्यों दिया तूने | क्यों दिया तूने | ||
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पाप को संरक्षण | पाप को संरक्षण | ||
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अपनी महत्ता को स्थिर रखने हेतु ? | अपनी महत्ता को स्थिर रखने हेतु ? | ||
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क्यों की तूने गंधक | क्यों की तूने गंधक | ||
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और आग की वर्षा | और आग की वर्षा | ||
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हरे भरे सदोम और अमोरा नगरों पर | हरे भरे सदोम और अमोरा नगरों पर | ||
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अपना अस्तित्व मनवाने को ? | अपना अस्तित्व मनवाने को ? | ||
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क्यों लड़ा दिया तूने | क्यों लड़ा दिया तूने | ||
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आदमी की एक नस्ल को | आदमी की एक नस्ल को | ||
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आदमी की दूसरी नस्ल से | आदमी की दूसरी नस्ल से | ||
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इस तरह कि | इस तरह कि | ||
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एक नस्ल मनाती रही | एक नस्ल मनाती रही | ||
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फसह का पर्व - निरपेक्ष रहकर | फसह का पर्व - निरपेक्ष रहकर | ||
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और दूसरी नस्ल के | और दूसरी नस्ल के | ||
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सब जेठे बेटे और जानवर भी मार डाले तूने | सब जेठे बेटे और जानवर भी मार डाले तूने | ||
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व्यक्तिगत प्रतिशोध में ? | व्यक्तिगत प्रतिशोध में ? | ||
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क्यों विवश किया मूसा को तूने | क्यों विवश किया मूसा को तूने | ||
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कि वह समुद्र जल में डुबो दे | कि वह समुद्र जल में डुबो दे | ||
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उस देश को | उस देश को | ||
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जो तेरे समक्ष नहीं झुका | जो तेरे समक्ष नहीं झुका | ||
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और जिसने नहीं किया तेरा स्तुति गान ? | और जिसने नहीं किया तेरा स्तुति गान ? | ||
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मनुष्यता के विरुद्ध | मनुष्यता के विरुद्ध | ||
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इतने अपराधों के स्रष्टा ओ नृशंस! | इतने अपराधों के स्रष्टा ओ नृशंस! | ||
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बड़ा नकली लगता है जब पर्वत शिखर पर से | बड़ा नकली लगता है जब पर्वत शिखर पर से | ||
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तू देता है प्रेम का संदेश | तू देता है प्रेम का संदेश | ||
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अपने किसी पुत्र के मुँह से।। | अपने किसी पुत्र के मुँह से।। | ||
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03:40, 22 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण
ओ नृशंस प्रभु!
क्यों किया तूने ऐसा
कि अपनी ही संतान को
बलिपशु बना डाला
अपनी अधिकार-लिप्सा के हेतु ?
क्यों अपना शासन बनाए रखने को
क्षमा कर दिया तूने
सहोदर के हत्यारे काइन को ?
क्यों दिया तूने
पाप को संरक्षण
अपनी महत्ता को स्थिर रखने हेतु ?
क्यों की तूने गंधक
और आग की वर्षा
हरे भरे सदोम और अमोरा नगरों पर
अपना अस्तित्व मनवाने को ?
क्यों लड़ा दिया तूने
आदमी की एक नस्ल को
आदमी की दूसरी नस्ल से
इस तरह कि
एक नस्ल मनाती रही
फसह का पर्व - निरपेक्ष रहकर
और दूसरी नस्ल के
सब जेठे बेटे और जानवर भी मार डाले तूने
व्यक्तिगत प्रतिशोध में ?
क्यों विवश किया मूसा को तूने
कि वह समुद्र जल में डुबो दे
उस देश को
जो तेरे समक्ष नहीं झुका
और जिसने नहीं किया तेरा स्तुति गान ?
मनुष्यता के विरुद्ध
इतने अपराधों के स्रष्टा ओ नृशंस!
बड़ा नकली लगता है जब पर्वत शिखर पर से
तू देता है प्रेम का संदेश
अपने किसी पुत्र के मुँह से।।