भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छिपकली / ऋषभ देव शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
ऋषभ देव शर्मा (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
− | |||
चिपक गई है | चिपक गई है | ||
− | |||
मेरे दिमाग में | मेरे दिमाग में | ||
− | |||
एक प्रागैतिहासिक छिपकली | एक प्रागैतिहासिक छिपकली | ||
− | |||
निरंतर फड़फड़ा रही है | निरंतर फड़फड़ा रही है | ||
− | |||
अपने लंबे मैले पंख | अपने लंबे मैले पंख | ||
− | |||
और प्रदूषित होती जा रही है | और प्रदूषित होती जा रही है | ||
− | |||
पीयूष रस से भरी मेरी डल झील | पीयूष रस से भरी मेरी डल झील | ||
− | |||
गोताखोर तलाशेंगे | गोताखोर तलाशेंगे | ||
− | |||
कुछ दिन बाद | कुछ दिन बाद | ||
− | |||
इसके तल में | इसके तल में | ||
− | |||
आक्सीजनवाही मछलियों के | आक्सीजनवाही मछलियों के | ||
− | |||
जीवाश्म ! | जीवाश्म ! | ||
<Poem> | <Poem> |
03:42, 22 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण
चिपक गई है
मेरे दिमाग में
एक प्रागैतिहासिक छिपकली
निरंतर फड़फड़ा रही है
अपने लंबे मैले पंख
और प्रदूषित होती जा रही है
पीयूष रस से भरी मेरी डल झील
गोताखोर तलाशेंगे
कुछ दिन बाद
इसके तल में
आक्सीजनवाही मछलियों के
जीवाश्म !