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"गुजर गया एक और दिन / उमाकांत मालवीय" के अवतरणों में अंतर
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+ | ज्यों मिलन-विरह । | ||
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+ | रह गया न कोई अहसास | ||
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+ | क्या बुरा-भला | ||
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+ | छाँछ पर न कोई विश्वास | ||
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+ | दूध का जला | ||
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+ | कोल्हू की परिधि फाइलें | ||
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+ | मेज की सतह । |
09:46, 27 अगस्त 2006 का अवतरण
गुजर गया एक और दिन,
रोज की तरह ।
चुगली औ’ कोरी तारीफ़,
बस यही किया ।
जोड़े हैं काफिये-रदीफ़
कुछ नहीं किया ।
तौबा कर आज फिर हुई,
झूठ से सुलह ।
याद रहा महज नून-तेल,
और कुछ नहीं
अफसर के सामने दलेल,
नित्य क्रम यही
शब्द बचे, अर्थ खो गये,
ज्यों मिलन-विरह ।
रह गया न कोई अहसास
क्या बुरा-भला
छाँछ पर न कोई विश्वास
दूध का जला
कोल्हू की परिधि फाइलें
मेज की सतह ।