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"गुजर गया एक और दिन / उमाकांत मालवीय" के अवतरणों में अंतर

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कोल्हू की परिधि फाइलें  
 
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तो मिले सजा ।
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सिर्फ बधिर, अंधे, गूँगों –
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के लिए जगह ।
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डरा नहीं, आये तूफान,
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उमस क्या करुँ ?
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बंधक हैं अहं स्वाभिमान,
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घुटूँ औ’ मरूँ
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चर्चाएँ नित अभाव की –
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शाम औ’ सुबह।
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केवल पुंसत्वहीन, क्रोध,
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और बेबसी ।
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अपनी सीमाओं का बोध
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खोखली हँसी
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झिड़क दिया बेवा माँ को
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उफ्, बिलावजह

09:48, 27 अगस्त 2006 का अवतरण

गुजर गया एक और दिन,

रोज की तरह ।



चुगली औ’ कोरी तारीफ़,

बस यही किया ।

जोड़े हैं काफिये-रदीफ़

कुछ नहीं किया ।

तौबा कर आज फिर हुई,

झूठ से सुलह ।



याद रहा महज नून-तेल,

और कुछ नहीं

अफसर के सामने दलेल,

नित्य क्रम यही

शब्द बचे, अर्थ खो गये,

ज्यों मिलन-विरह ।



रह गया न कोई अहसास

क्या बुरा-भला

छाँछ पर न कोई विश्वास

दूध का जला


कोल्हू की परिधि फाइलें

मेज की सतह ।



‘ठकुर सुहाती’ जुड़ी जमात,

यहाँ यह मजा ।

मुँहदेखी, यदि न करो बात

तो मिले सजा ।

सिर्फ बधिर, अंधे, गूँगों –

के लिए जगह ।



डरा नहीं, आये तूफान,

उमस क्या करुँ ?

बंधक हैं अहं स्वाभिमान,

घुटूँ औ’ मरूँ

चर्चाएँ नित अभाव की –

शाम औ’ सुबह।



केवल पुंसत्वहीन, क्रोध,

और बेबसी ।

अपनी सीमाओं का बोध

खोखली हँसी

झिड़क दिया बेवा माँ को

उफ्, बिलावजह ।