भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
 
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
 
<!----BOX CONTENT STARTS------>
 
<!----BOX CONTENT STARTS------>
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''यार दहलीज़ छू कर<br>
+
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''तुम मान्दोरिया<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विजय वाते]]  
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[ठाकुर प्रसाद सिंह]]  
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
यार दहलीज़ छू कर ना जाया करो|
+
तुम मान्दोरिया
तुम कभी दोस्त बनकर भी आया करो|
+
  
क्या ज़रूरी है सुख दुख में ही बात हो,
+
हम नाचोनिया
जब कभी फोन यूँ ही लगाया करो|
+
  
बीते आवारा दिन याद करके कभी,
 
अपने ठीये पे चक्कर लगाया करो|
 
  
वक़्त की रेत मुट्ठी में रुकती नहीं,
+
मादर ना बजा
इसलिए कुछ हरे पल चुराया करो|
+
 
 +
रसीला मादर न बजा
 +
 
 +
 
 +
बाप खड़े
 +
 
 +
माँ खड़ी
 +
 
 +
खिड़की का पल्ला धरे
 +
 
 +
खड़ा है पिया
 +
 
 +
 
 +
हम नाचोनिया
 +
 
 +
मादर ना बजा
  
हमने गुमटी पर कल चाय पी थी "विजय"
 
तुम भी आकर के मज़मे लगाया करो|
 
 
</pre>
 
</pre>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
 
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>

10:33, 28 अप्रैल 2009 का अवतरण

 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: तुम मान्दोरिया
  रचनाकार: ठाकुर प्रसाद सिंह

तुम मान्दोरिया

हम नाचोनिया


मादर ना बजा

रसीला मादर न बजा


बाप खड़े

माँ खड़ी

खिड़की का पल्ला धरे

खड़ा है पिया


हम नाचोनिया

मादर ना बजा