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"इक परिन्दा आज मेरी छत पे मंडलाया तो है / गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर
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08:20, 29 अप्रैल 2009 का अवतरण
इक परिन्दा आज मेरी छत पे मँडलाया तो है डूबती आँखों में कोई अक्स गहराया तो है
देखिए अंजाम क्या होता है इस आग़ाज़ का आज इक शीशा किसी पत्थर से टकराया तो है
डूबने वाले को तिनके का सहारा ही बहुत एक साया-सा घुँधलके में नज़र आया तो है
नेकियाँ इंसान की मरती नहीं मरने के बाद ये बुज़ुर्गों ने किताबों में भी फ़रमाया तो है
आहटें सुनता रहा हूँ देर तक क़दमों की मैं कोई मेरे साथ चल कर दूर तक आया तो है
धूप के साए में "गुलशन" खु़द को समझाता हूँ यूँ छत नहीं सर तो क्या सूरज का सरमाया तो है