भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गाँव खेतों-क्यारियों में बोलता है / ऋषभ देव शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: गाँव, खेतों-क्यारियों में बोलता है चीख में, सिसकारियों में बोलता ...)
(कोई अंतर नहीं)

00:35, 2 मई 2009 का अवतरण

गाँव, खेतों-क्यारियों में बोलता है चीख में, सिसकारियों में बोलता है

पड़ गईं कितनी दरारें, आज नक्शा तीन-रंगी धारियों में बोलता है

आपका बाजार लुटना है जरूरी मांस - ज़िंदा, लारियों में बोलता है


दूध मत छीनो, दिखाकर झुनझुना यूँ पालना किलकारियों में बोलता है

आपका चेहरा रँगेगा खून मेरा आपकी पिचकारियों में बोलता है