भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पाँव का कालीन उनके हो गया मेरा शहर / ऋषभ देव शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तेवरी / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem>प...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:48, 2 मई 2009 के समय का अवतरण
पाँव का कालीन उनके हो गया मेरा शहर
कुर्सियों के म्यूज़ियम में खो गया मेरा शहर
हर गली-बाज़ार चोरों के हवाले छोड़कर
भोर से अण्टा चढ़ाकर सो गया मेरा शहर
पीठ पर नीले निशानों की उगी हैं बस्तियाँ
बोझ कितने ही गधों का ढो गया मेरा शहर
बाँसुरी की धुन बजाते घूमते नीरो कई
जनपथों पर भीड़ चीखी - लो गया मेरा शहर
चीड़ के ऊँचे वनों में फैलती यों सनसनी
जब जगा, कुछ आग के कण बो गया मेरा शहर