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"कोई हँस रहा है कोई रो रहा है / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर
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01:30, 3 मई 2009 का अवतरण
कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
कोई पा रहा है कोई खो रहा है
कोई ताक में है किसी को है ग़फ़्लत
कोई जागता है कोई सो रहा है
कहीँ नाउम्मीदी ने बिजली गिराई
कोई बीज उम्मीद के बो रहा है
इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर'
यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा है
शब्दार्थ :
ग़फ़्लत=भूल