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01:51, 3 मई 2009 के समय का अवतरण
कोई ये कह दे गुलशन गुलशन
लाख बलाएँ एक नशेमन
कामिल रेहबर क़ातिल रेहज़न
दिल सा दोस्त न दिल सा दुशमन
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन
उमरें बीतीं सदियाँ गुज़रीं
है वही अब तक अक़्ल का बचपन
इश्क़ है प्यारे खेल नहीं है
इश्क़ है कारे शीशा-ओ-आहन
खै़र मिज़ाज-ए-हुस्न की यारब
तेज़ बहुत है दिल की धड़कन
आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रोशन
आ कि न जाने तुझ बिन कल से
रूह है लाशा, जिस्म है मदफ़न
काँटों का भी हक़ है कुछ आखि़र
कौन छुड़ाए अपना दामन