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Kavita Kosh से
|रचनाकार=अकबर इलाहाबादी
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[[Category:ग़ज़ल]]
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दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार<sup>1</sup> नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँ
अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़<sup>18</sup> की कुछ हद नहीं “अकबर”क़ाफ़िर<sup>19</sup> के मुक़ाबिल में भी दींदार<sup>20</sup> नहीं हूँ</poem><br>''' शब्दार्थ:1. तलबगार= इच्छुक, चाहने वाला;2. ज़ीस्त= जीवन; 3. लज़्ज़त= स्वाद; 4. ख़ाना-ए-हस्त= अस्तित्व का घर; 5. बेलौस= लांछन के बिना<br>; 6. फ़क़्त= केवल; 7. नक़्श= चिन्ह, चित्र<br><br> अफ़सुर्दा हूँ इबारत से, दवा की नहीं हाजित<br>गम़ का मुझे ये जो’फ़ है, बीमार नहीं हूँ <br><br>; 8. अफ़सुर्दा= निराश; 9. इबारत= शब्द, लेख; 10. हाजित(हाजत)= आवश्यकता<br>;11. जो’फ़(ज़ौफ़)= कमजोरी,क्षीणता<br><br> वो गुल हूँ ख़िज़ां ने जिसे बरबाद किया है<br>उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ <br><br>;12. गुल=फूल; 13. ख़िज़ां= पतझड़; 14. ख़ार= कांटा<br><br>; यारब मुझे महफ़ूस रख उस बुत के सितम से<br>मैं उस की इनायत का तलबगार नहीं हूँ<br><br> महफ़ूस15. महफ़ूज़= सुरक्षित; 16. इनायत= कृपा; 17. तलबगार= इच्छुक<br><br> अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़ की कुछ हद नहीं “अकबर”<br>काफ़िर के मुक़ाबिल में भी दींदार नहीं हूँ <br><br>;18. अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़=निराशा और क्षीणता;काफ़िर19. क़ाफ़िर=नास्तिक; 20. दींदार=आस्तिक,धर्म का पालन करने वालावाला।