"सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या / ख़्वाजा हैदर अली 'आतिश'" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = ख़्वाजा हैदर अली 'आतिश' }} Category:गज़ल सुन तो सही जहाँ में ...) |
Bohra.sankalp (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार = ख़्वाजा हैदर अली 'आतिश' | + | |रचनाकार =ख़्वाजा हैदर अली 'आतिश' |
}} | }} | ||
[[Category:गज़ल]] | [[Category:गज़ल]] | ||
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या<br> | सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या<br> | ||
केहती है तुझको खल्क़-ए-खुदा ग़ाएबाना क्या <br><br> | केहती है तुझको खल्क़-ए-खुदा ग़ाएबाना क्या <br><br> | ||
+ | |||
+ | ज़ीना सबा का ढूँढती है अपनी मुश्त-ए-ख़ाक<br> | ||
+ | बाम-ए-बलन्द यार का है आस्ताना क्या<br><br> | ||
ज़ेरे ज़मीं से आता है गुल हर सू ज़र-ए-बकफ़<br> | ज़ेरे ज़मीं से आता है गुल हर सू ज़र-ए-बकफ़<br> | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 24: | ||
तिरछी निगह से ताइर-ए-दिल हो चुका शिकार <br> | तिरछी निगह से ताइर-ए-दिल हो चुका शिकार <br> | ||
जब तीर कज पड़ेगा उड़ेगा निशाना क्या?<br><br> | जब तीर कज पड़ेगा उड़ेगा निशाना क्या?<br><br> | ||
+ | |||
+ | बेताब है कमाल हमारा दिल-ए-अज़ीम <br> | ||
+ | महमाँ साराय-ए-जिस्म का होगा रवना क्या<br><br> | ||
यूँ मुद्दई हसद से न दे दाद तू न दे <br> | यूँ मुद्दई हसद से न दे दाद तू न दे <br> | ||
आतिश ग़ज़ल ये तूने कही आशिक़ाना क्या? | आतिश ग़ज़ल ये तूने कही आशिक़ाना क्या? | ||
+ | |||
+ | *[http://jagjitsingh-sankalp.blogspot.com/ Bazm-E-Jagjit] |
11:48, 3 मई 2009 का अवतरण
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
केहती है तुझको खल्क़-ए-खुदा ग़ाएबाना क्या
ज़ीना सबा का ढूँढती है अपनी मुश्त-ए-ख़ाक
बाम-ए-बलन्द यार का है आस्ताना क्या
ज़ेरे ज़मीं से आता है गुल हर सू ज़र-ए-बकफ़
क़ारूँ ने रास्ते में लुटाया खज़ाना क्या
चारों तरफ़ से सूरत-ए-जानाँ हो जलवागर
दिल साफ़ हो तेरा तो है आईना खाना क्या
तिब्ल-ओ-अलम न पास है अपने न मुल्क-ओ-माल
हम से खिलाफ़ हो के करेगा ज़माना क्या
आती है किस तरह मेरी क़ब्ज़-ए-रूह को
देखूँ तो मौत ढूँढ रही है बहाना क्या
तिरछी निगह से ताइर-ए-दिल हो चुका शिकार
जब तीर कज पड़ेगा उड़ेगा निशाना क्या?
बेताब है कमाल हमारा दिल-ए-अज़ीम
महमाँ साराय-ए-जिस्म का होगा रवना क्या
यूँ मुद्दई हसद से न दे दाद तू न दे
आतिश ग़ज़ल ये तूने कही आशिक़ाना क्या?