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क्या उठायेगी सबा ख़ाक मेरी उस दर से | क्या उठायेगी सबा ख़ाक मेरी उस दर से | ||
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23:17, 3 मई 2009 के समय का अवतरण
दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उनको सुनाई न गई
बात बिगड़ी थी कुछ ऐसी कि बनाई न गई
सब को हम भूल गए जोश-ए-जुनूँ में लेकिन
इक तेरी याद थी ऐसी कि भुलाई न गई
इश्क़ पर कुछ न चला दीदा-ए-तर का जादू
उसने जो आग लगा दी वो बुझाई न गई
क्या उठायेगी सबा ख़ाक मेरी उस दर से
ये क़यामत तो ख़ुद उन से भी उठाई न गई