"देश जेब में / शैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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| अपंग बच्चा नज़र आता है | अपंग बच्चा नज़र आता है | ||
| जो अपने लुँज हाथों को | जो अपने लुँज हाथों को | ||
| उठाने की कोशिश करता हुआ | उठाने की कोशिश करता हुआ | ||
| − | + | चीख़ रहा है- | |
| 'मुझे दल-दल से निकालो | 'मुझे दल-दल से निकालो | ||
| − | + | मैं प्रजातंत्र हूँ | |
| मुझे बचा लो। | मुझे बचा लो। | ||
| मैं तुम्हारा ईमान हूँ | मैं तुम्हारा ईमान हूँ | ||
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| राजनीति लपेट लेते हैं | राजनीति लपेट लेते हैं | ||
| और रहा कॉमर्स, तो उसे | और रहा कॉमर्स, तो उसे | ||
| − | उनके भाई भतीजे | + | उनके भाई-भतीजे | 
| और दामाद समेट लेते हैं।" | और दामाद समेट लेते हैं।" | ||
| हमने कहा- | हमने कहा- | ||
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| आपके पास कोई विषय नहीं है।" | आपके पास कोई विषय नहीं है।" | ||
| वे बोले-"क्यों नहीं   | वे बोले-"क्यों नहीं   | ||
| − | + | बूढ़ा बाप है | |
| बीमार माँ है | बीमार माँ है | ||
| उदास बीबी है | उदास बीबी है | ||
| भूखे बच्चे हैं | भूखे बच्चे हैं | ||
| − | जवान  | + | जवान बहिन है | 
| बेकार भाई है | बेकार भाई है | ||
| भ्रष्टाचार है | भ्रष्टाचार है | ||
| महंगाई है | महंगाई है | ||
| − | बीस का  | + | बीस का ख़र्चा है | 
| दस की कमाई है | दस की कमाई है | ||
| इधर कुआँ है | इधर कुआँ है | ||
| पंक्ति 48: | पंक्ति 48: | ||
| वे बोले-"तीस की उम्र में | वे बोले-"तीस की उम्र में | ||
| साठ के नज़र आ रहे हैं | साठ के नज़र आ रहे हैं | ||
| − | बस यूँ  | + | बस यूँ समझिए | 
| − | कि अपनी ही उम्र खा रहे  | + | कि अपनी ही उम्र खा रहे हैं | 
| हिन्दुस्तान में पैदा हुए थे | हिन्दुस्तान में पैदा हुए थे | ||
| क़ब्रिस्तान में जी रहे हैं | क़ब्रिस्तान में जी रहे हैं | ||
| जबसे माँ का दूध छोड़ा है | जबसे माँ का दूध छोड़ा है | ||
| − | आँसू पी रहे  | + | आँसू पी रहे हैं।" | 
| हमने कहा-"भगवान जाने | हमने कहा-"भगवान जाने | ||
| पंक्ति 60: | पंक्ति 60: | ||
| आँसुओं का समन्दर है   | आँसुओं का समन्दर है   | ||
| जो भी उसे लूट ले   | जो भी उसे लूट ले   | ||
| − | वही  | + | वही मुक़द्दर का सिकन्दर है।" | 
| हमने पूछा-"देश का क्या होगा?" | हमने पूछा-"देश का क्या होगा?" | ||
| पंक्ति 66: | पंक्ति 66: | ||
| मगर जहाँ का तहाँ है | मगर जहाँ का तहाँ है | ||
| कल आपको ढूँढना पड़ेगा | कल आपको ढूँढना पड़ेगा | ||
| − | कि देश  | + | कि देश कहाँ है | 
| कोई कहेगा-ढूँढते रहिए | कोई कहेगा-ढूँढते रहिए | ||
| देश तो हमारी जेब में पड़ा है | देश तो हमारी जेब में पड़ा है | ||
| देश क्या हमारी जेब से बड़ा है?" | देश क्या हमारी जेब से बड़ा है?" | ||
07:56, 4 मई 2009 का अवतरण
एक मित्र कहने लगे-
"जहाँ तक नज़र जाती है
एक सैंतीस बरस का
अपंग बच्चा नज़र आता है
जो अपने लुँज हाथों को
उठाने की कोशिश करता हुआ
चीख़ रहा है-
'मुझे दल-दल से निकालो
मैं प्रजातंत्र हूँ
मुझे बचा लो।
मैं तुम्हारा ईमान हूँ
गाँधी की तपस्या हूँ
भारत की पहचान हूँ।'
"काम वाले हाथों में
झंडा थमा देने वाले
वक़्त के सौदागर
बड़े ऊँचे खिलाड़ी हैं
जो अपना भूगोल ढाँकने के लिए
राजनीति लपेट लेते हैं
और रहा कॉमर्स, तो उसे
उनके भाई-भतीजे
और दामाद समेट लेते हैं।"
हमने कहा-
"नेताओं के अलावा 
आपके पास कोई विषय नहीं है।"
वे बोले-"क्यों नहीं 
बूढ़ा बाप है
बीमार माँ है
उदास बीबी है
भूखे बच्चे हैं
जवान बहिन है
बेकार भाई है
भ्रष्टाचार है
महंगाई है
बीस का ख़र्चा है
दस की कमाई है
इधर कुआँ है
उधर खाई है।"
हमने पूछा-"क्या उम्र है आपकी?"
वे बोले-"तीस की उम्र में
साठ के नज़र आ रहे हैं
बस यूँ समझिए
कि अपनी ही उम्र खा रहे हैं
हिन्दुस्तान में पैदा हुए थे
क़ब्रिस्तान में जी रहे हैं
जबसे माँ का दूध छोड़ा है
आँसू पी रहे हैं।"
हमने कहा-"भगवान जाने
देश की जनता का क्या होगा?"
वे बोले-"जनता का देर्द ख़जाना है
आँसुओं का समन्दर है 
जो भी उसे लूट ले 
वही मुक़द्दर का सिकन्दर है।"
हमने पूछा-"देश का क्या होगा?"
वे बोले -"देश बरसो से चल रहा है
मगर जहाँ का तहाँ है
कल आपको ढूँढना पड़ेगा
कि देश कहाँ है
कोई कहेगा-ढूँढते रहिए
देश तो हमारी जेब में पड़ा है
देश क्या हमारी जेब से बड़ा है?"
 
	
	

