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तो बोला : चलिए
::: आपने हमें यार तो कहा
::: अब्ब अब आगे का काम
::: हम सम्भाल लेंगे
::: आप हमको पाल लीजिए
::: आपके बाल-बच्चो बच्चों को
::: हम पाल लेंगे
हमने कहा : भ्रष्टाचार जी!
::: किसी नेत नेता या अफ़सर के::: बच्चो बच्चे को पालना
::: और बात है
::: इन्सान के बच्चो बच्चे को पालना
::: आसान नहीं है
वो बोला : जो वक्त के साथ नहीं चलता
::: इंसान नहीं है
::: मैं आज का वक्त हूँ
::: कल्युग कलयुग की धमनियों में
::: बहता हुआ रक्त हूँ
::: कहने को काला हूँ
::: मगर मेरे कई रेंज रंग हैं::: दहेज़, बेरोज़्गारीबेरोज़गारी
::: हड़ताल और दंगे
::: मेरे ही बीस सूत्री कार्यक्रम के अंग हैं
::: और दरवाज़े पर दस्तक देती है
::: सुनहरी भोर
::: उसके हाथ में चान्दी चांदी का जूता है
::: जिसके सर पर पड़ता है
::: वही चिल्लाता है
::: कि मेरे साथ हो लो
::: और बहती गंगा में हाथ धो लो
हमने कहा : गटर को गंगा कहते हो?
::: ये तो वक्त की बात है
::: जो भारत वर्ष में रह रहे हो
वो बोला : भारत और भ्रष्टाचार की राशि एक है
::: कश्मीर से कन्याकुमारी तक
::: हमारी ही देख-रेख है
::: राजनीति हमारी प्रेमिका
::: और पार्टी औलाद है
::: आज़ादी हमारी आया
::: और नेता हमारा दामाद है
हमने कहा : ठीक कहते हो भ्रष्टाचार जी!
::: दामाद चुनाव में खड़ा हो जाता है
::: और जीतने के बाद
::: उसकी अँगुली छोटी
::: और नाख़ून बड़ा हो जाता है
::: मगर याद रखना
::: दामादों का भविष्य काला है
::: बस, तूफ़ान आने ही वाला है
वो बोला : तूफ़ान आए चाहे आंधी
::: अपना तो एक ही नारा है
::: भरो तिज़ोरी चांदी की
::: जै बोलो महात्मा गांधी की
हमने कहा : अपने नापाक मुँह से
::: गांधी का नाम तो मत लो
वो बोला : इस ज़माने में
::: गांधी का नाम
::: मेरे सिवाय कौन लेता है
::: गांधी के सिद्धांतों पर चलने वालों को
::: जीने कौन देता है
::: मत भूलो
::: कि भ्रष्टाचार
::: इस ज़माने की लाचारी है
::: हमें मालूम है
::: कि आप कवि हैं
::: और आपने
::: कविता की कौन-सी लाइन
::: कहाँ से मारी है।