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"मैं हूँ हस्ति-ए-नाचीज़’ मुझसे किसी को चाह नहीं/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
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लेखन वर्ष: 2004
मैं हूँ हस्ति-ए-नाचीज़’<ref>जिसका अस्तित्व न के बराबर हो</ref> मुझसे किसी को चाह नहीं
मैं हूँ शिगाफ़े-शीशा’<ref>शीशे में आयी हुई दरार</ref> मुझसे किसी को राह नहीं
मैं आया हूँ जाने किसलिए इस हसीन दुनिया में
किसी की आँखों में मेरे लिए प्यार की निगाह नहीं
मैं हूँ अपने दर्दो-आहो-फ़ुगाँ<ref>दर्द, आह, और जलन</ref> की आप सदा<ref>पुकार</ref>
शायद इस गुमनाम रात की कोई सुबह नहीं
कोई क्या जाने तन्हाई के साग़र’<ref>ख़ाली जाम</ref> हमसे पूछो
कि अब मेरे इस दिल में और ख़ाली जगह नहीं
शब्दार्थ
<references/>