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"जो मुझे होता है वह दर्द तुझ तक पहुँचे/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

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लेखन वर्ष: 2004

जो मुझे होता है वह दर्द तुझ तक पहुँचे
यूँ इस ख़ला की यह गर्द तुझ तक पहुँचे

की है इस दिल ने सदा तुझसे मोहब्बत
सादा-सादा इक यह फ़र्द तुझ तक पहुँचे

धूप सारे आलम में महकी हुई है हर-सू
कि मेरे सीने की यह सर्द तुझ तक पहुँचे

चमन-चमन में है आज मौसम-ए-बहार
कभी यह मौसम-ए-ज़र्द तुझ तक पहुँचे