"शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फ़र्माता हूँ मैं / जिगर मुरादाबादी" के अवतरणों में अंतर
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आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं | आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं | ||
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जिस क़दर अफ़साना-ए-हस्ती को दोहराता हूँ मैं | जिस क़दर अफ़साना-ए-हस्ती को दोहराता हूँ मैं | ||
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जब मकान-ओ-लामकाँ सब से गुज़र जाता हूँ मैं | जब मकान-ओ-लामकाँ सब से गुज़र जाता हूँ मैं | ||
− | + | अल्लाह-अल्लाह तुझ को ख़ुद अपनी जगह पाता हूँ मैं | |
− | + | हाय री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिये | |
मुझ को समझाते हैं वो और उन को समझाता हूँ मैं | मुझ को समझाते हैं वो और उन को समझाता हूँ मैं | ||
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हुस्न को क्या दुश्मनी है इश्क़ को क्या बैर है | हुस्न को क्या दुश्मनी है इश्क़ को क्या बैर है | ||
− | अपने ही क़दमों | + | अपने ही क़दमों की ख़ुद ही ठोकरें खाता हूँ मैं |
तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर | तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर | ||
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एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ "ज़िगर" | एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ "ज़िगर" | ||
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं | एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं | ||
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00:41, 10 मई 2009 का अवतरण
शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फ़र्माता हूँ मैं
रूह बन कर ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शै में किसी शै की कमी पाता हूँ मैं
जिस क़दर अफ़साना-ए-हस्ती को दोहराता हूँ मैं
और भी बेगाना-ए-हस्ती हुआ जाता हूँ मैं
जब मकान-ओ-लामकाँ सब से गुज़र जाता हूँ मैं
अल्लाह-अल्लाह तुझ को ख़ुद अपनी जगह पाता हूँ मैं
हाय री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिये
मुझ को समझाते हैं वो और उन को समझाता हूँ मैं
मेरी हिम्मत देखना मेरी तबीयत देखना
जो सुलझ जाती है गुत्थी फिर से उलझाता हूँ मैं
हुस्न को क्या दुश्मनी है इश्क़ को क्या बैर है
अपने ही क़दमों की ख़ुद ही ठोकरें खाता हूँ मैं
तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं
वाह रे शौक़-ए-शहादत कू-ए-क़ातिल की तरफ़
गुन-गुनाता रक़्स करता झुमता जाता हूँ मैं
देखना उस इश्क़ की ये तुर्फ़ाकारी देखना
वो जफ़ा करते हैं मुझ पर और शर्माता हूँ मैं
एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ "ज़िगर"
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं