भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKPoemOfTheWeek

323 bytes added, 19:45, 11 मई 2009
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
<!----BOX CONTENT STARTS------>
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''उसकी थकानअंकुर<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[भगवत रावतइब्बार रब्बी]]
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
कोई लम्बी कहानी ही अंकुर जब सिर उठाता हैज़मीन की छत फोड़ गिराता हैबयान कर सके शायदवह जब अंधेरे में अंगड़ाता हैमिट्टी का कलेजा फट जाता हैउसकी थकान जो मुझसे दो बच्चों हरी छतरियों की दूरी परतन जाती है कतारछापामारों के दस्ते सज जाते हैंन जाने कब सेपाँत के पाँतनई हो या पुरानीक्या-क्या सिलते-सिलते हाथों में सुई धागा लिए हुए हीवह हर ज़मीन काटता हैहरा सिर हिलाता हैसो गई नन्हा धड़ तानता है अंकुर आशा का रंग जमाता है।
</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,730
edits