"आज यूँ मौज-दर-मौज / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ |संग्रह= }} <poem> आज यूँ मौज-दर-मौज ग...) |
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया | आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया | ||
इस तरह गमज़दों को करार आ गया | इस तरह गमज़दों को करार आ गया | ||
− | जैसे खुशबू-ए- | + | जैसे खुशबू-ए-जुल्फ-ए-बहार आ गयी |
− | जैसे पैगाम- | + | जैसे पैगाम-ए-दीदार-ए-यार आ गया |
जिसकी देदो-तलब वहम समझे थे हम | जिसकी देदो-तलब वहम समझे थे हम | ||
− | रू- | + | रू-ब-रू फ़िर से सरे-रहगुज़र आ गए |
− | + | सुबह-ए-फर्दा को फ़िर दिल तरसने लगा | |
उम्र-रफ्त: तेरा ऐतबार आ गया | उम्र-रफ्त: तेरा ऐतबार आ गया | ||
पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
रंगे-गुलशन से अब हाल खुलता नहीं | रंगे-गुलशन से अब हाल खुलता नहीं | ||
ज़ख्म छलका कोई या गुल खिला | ज़ख्म छलका कोई या गुल खिला | ||
− | अश्क उमड़े की | + | अश्क उमड़े की अब्र-ए-बहार आ गया |
− | + | खून-ए-उश्शाक से जाम भरने लगे | |
दिल सुलगने लगे, दाग़ जलने लगे | दिल सुलगने लगे, दाग़ जलने लगे | ||
− | + | महफिल-ए-दर्द फ़िर रंग पर आ गयी | |
− | फिर | + | फिर शब-ए-आरजू पर निखार आ गया |
− | सरफरोशी के अंदाज़ | + | सरफरोशी के अंदाज़ बदलते गए |
− | + | दावत-ए-क़त्ल पर मक्ताल-ए-शहर में | |
डालकर कोई गर्दन में तौक़ आ गया | डालकर कोई गर्दन में तौक़ आ गया | ||
लादकर कोई काँधे पे दार आ गया | लादकर कोई काँधे पे दार आ गया |
20:43, 13 मई 2009 का अवतरण
आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया
इस तरह गमज़दों को करार आ गया
जैसे खुशबू-ए-जुल्फ-ए-बहार आ गयी
जैसे पैगाम-ए-दीदार-ए-यार आ गया
जिसकी देदो-तलब वहम समझे थे हम
रू-ब-रू फ़िर से सरे-रहगुज़र आ गए
सुबह-ए-फर्दा को फ़िर दिल तरसने लगा
उम्र-रफ्त: तेरा ऐतबार आ गया
रुत बदलने लगी रेंज-दिल देखना
रंगे-गुलशन से अब हाल खुलता नहीं
ज़ख्म छलका कोई या गुल खिला
अश्क उमड़े की अब्र-ए-बहार आ गया
खून-ए-उश्शाक से जाम भरने लगे
दिल सुलगने लगे, दाग़ जलने लगे
महफिल-ए-दर्द फ़िर रंग पर आ गयी
फिर शब-ए-आरजू पर निखार आ गया
सरफरोशी के अंदाज़ बदलते गए
दावत-ए-क़त्ल पर मक्ताल-ए-शहर में
डालकर कोई गर्दन में तौक़ आ गया
लादकर कोई काँधे पे दार आ गया
'फ़ैज़' क्या जानिए यार किस आस पर
मुन्तज़िर हैं की लाएगा कोई ख़बर
मयकशों पर हुआ मुहतसिब मेहरबान
दिलफिगारों पे क़ातिल को प्यार आ गया