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जीवन साफल्य / मुकुटधर पांडेय

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अंतर्हित हो वही अकेला सदा सब जगह रहता है
दया स्त्रोत स्रोत उसका हम सबर सब पर अविश्रांत नित बहता है
मन वच और कर्म से जिसने ऐसा प्रभु को अनुमाना
न्याय-न्याय अन्याय बिसार, स्वार्थ से अंध न जो न गर्व बैठा है
विद्या, बल, पौरुष, पाकर भी जो न गर्व से ऐंठा है
उसने दुःख दरिद्र हरने का अति पवित्र व्रत धारा है
जिसके जिसने सतत लोक-सेवा का ग्रहण किया है बर वाना
सफल किया, बस उसी एक ने इस जग में अपना आना ।