भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हो गई है पीर पर्वत / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,<br>इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी च...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=दुष्यंत कुमार | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | |||
+ | |||
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,<br>इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।<br><br><br>आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,<br><span class=""></span>शर्त थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।<br><br><br>हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,<span class=""></span><br><span class=""></span>हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।<br><br><br>सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,<br><span class=""></span>मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।<br><br><br>मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,<br>हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। | हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,<br>इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।<br><br><br>आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,<br><span class=""></span>शर्त थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।<br><br><br>हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,<span class=""></span><br><span class=""></span>हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।<br><br><br>सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,<br><span class=""></span>मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।<br><br><br>मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,<br>हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। |
21:01, 16 मई 2009 का अवतरण
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।