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"छिप के / गुलाम मुर्तुजा राही" के अवतरणों में अंतर

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चाहता है वो कि दरिया सूख जाये  
 
चाहता है वो कि दरिया सूख जाये  
  
रेत का व्यौपार करना चाहता है ।
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रेत का व्यापार करना चाहता है ।
  
  

21:10, 16 मई 2009 का अवतरण

कवि - गुलाम मुर्तुजा राही

छिप के कारोबार करना चाहता है

घर को वो बाज़ार करना चाहता है।


आसमानों के तले रहता है लेकिन

बोझ से इंकार करना चाहता है ।


चाहता है वो कि दरिया सूख जाये

रेत का व्यापार करना चाहता है ।


खींचता रहा है कागज पर लकीरें

जाने क्या तैयार करना चाहता है ।


पीठ दिखलाने का मतलब है कि दुश्मन

घूम कर इक वार करना चाहता है ।


दूर की कौडी उसे लानी है शायद

सरहदों को पार करना चाहता है ।


 प्रेषक - संजीव द्विवेदी -