"साक्षात्कार, संस्मरण और तुम्हारे विचारवान लेख / विजय गौड़" के अवतरणों में अंतर
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− | + | कविता हमेशा नहीं होती वक्तव्य | |
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जबकि, वक्तव्य में निकल ही पड़ते हैं विचार | जबकि, वक्तव्य में निकल ही पड़ते हैं विचार | ||
− | धर्म समाज की | + | धर्म समाज की ज़रूरत है |
मार खाने से ही आता है समझ में, | मार खाने से ही आता है समझ में, | ||
एक अदला धर्म | एक अदला धर्म | ||
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सांगठनिक बुनावट का | सांगठनिक बुनावट का | ||
− | + | ख़ूबसूरत वस्त्र भी | |
− | नहीं छुपा | + | नहीं छुपा पाएगा |
नापाक इरादों को, | नापाक इरादों को, | ||
सांगठनिक कसीदाकारी | सांगठनिक कसीदाकारी | ||
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गुंडे, हत्यारे और लम्पट । | गुंडे, हत्यारे और लम्पट । | ||
− | गिरोह लम्पटों की | + | गिरोह लम्पटों की ज़रूरत है। |
तुम्हारे संस्मरणों में | तुम्हारे संस्मरणों में | ||
तुम्हारे पाला बदलने के कारणों को | तुम्हारे पाला बदलने के कारणों को | ||
ढूंढा नहीं जा सकता | ढूंढा नहीं जा सकता | ||
− | किसी उल्लू की | + | किसी उल्लू की आँख से ; |
पहाड़ की खोह में | पहाड़ की खोह में | ||
− | समूचित धूप न पड़ पाने की | + | समूचित धूप न पड़ पाने की वज़ह से |
− | बची हुई थोड़ी-सी | + | बची हुई थोड़ी-सी बर्फ़ की |
गढ़ी गयी आकृति; ओम | गढ़ी गयी आकृति; ओम | ||
तुम्हारे भीतर | तुम्हारे भीतर | ||
− | तमसो | + | तमसो मा ज्योतिर्गमय का |
नाद उत्पन्न कर रही है, | नाद उत्पन्न कर रही है, | ||
और प्रार्थना में बुदबुदाते | और प्रार्थना में बुदबुदाते | ||
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अपनी नादानी का | अपनी नादानी का | ||
झूठा सहारा ले रही है | झूठा सहारा ले रही है | ||
− | तुम्हारी | + | तुम्हारी तिजोरियाँ |
पुरस्कारों से भरी पड़ी हैं | पुरस्कारों से भरी पड़ी हैं | ||
जिनके भार से दबी जा रही हैं | जिनके भार से दबी जा रही हैं | ||
− | तुम्हारी | + | तुम्हारी संवेदनाएँ |
बेशक भाषा की जादूगरी का | बेशक भाषा की जादूगरी का | ||
गजब का करिश्मा करते रहे हो तुम | गजब का करिश्मा करते रहे हो तुम | ||
− | हाथ की | + | हाथ की सफ़ाई का |
जबरदस्त अभ्यास है तुम्हें | जबरदस्त अभ्यास है तुम्हें | ||
पर घृणित विचारों में लिपटी तुम्हारी भाषा | पर घृणित विचारों में लिपटी तुम्हारी भाषा | ||
पंक्ति 79: | पंक्ति 77: | ||
हत्यारों के रथ पर जुते घोड़ों को | हत्यारों के रथ पर जुते घोड़ों को | ||
धीरे-धीरे मारते हो | धीरे-धीरे मारते हो | ||
− | ताकि उनकी | + | ताकि उनकी बग्घी को खींचता घोड़ा |
− | दौड़े बहुत-बहुत | + | दौड़े बहुत-बहुत तेज़ |
और हत्यारे हत्याओं से फैला दें | और हत्यारे हत्याओं से फैला दें | ||
इतनी दहश्त | इतनी दहश्त | ||
कि हत्यारों का समर्थन करना | कि हत्यारों का समर्थन करना | ||
− | तुम्हारी | + | तुम्हारी मज़बूरी जान पड़े |
अचानक तुम्हारे पाला बदल लेने पर | अचानक तुम्हारे पाला बदल लेने पर | ||
हकबका कर भी तुम्हारे विरोध की | हकबका कर भी तुम्हारे विरोध की | ||
− | हिम्मत न जुटा | + | हिम्मत न जुटा पाए |
कोई इक्का-दुक्का बचा हुआ | कोई इक्का-दुक्का बचा हुआ | ||
विरोधी हत्यारों का | विरोधी हत्यारों का | ||
पंक्ति 96: | पंक्ति 94: | ||
ज्ञानपीठ हो | ज्ञानपीठ हो | ||
− | बंडियों के नीचे | + | बंडियों के नीचे छिपाए हुए |
गात पर रगड़ खाते | गात पर रगड़ खाते | ||
जनेऊ के लटकते धागे को | जनेऊ के लटकते धागे को | ||
− | छुपाने की अब कोई | + | छुपाने की अब कोई ज़रूरत नहीं |
तुम्हारे ध्वज वाहकों ने | तुम्हारे ध्वज वाहकों ने | ||
त्रिशूल, बल्लम और नृशंस हत्या के | त्रिशूल, बल्लम और नृशंस हत्या के | ||
उम्दा से उम्दा हथियारों से लैस | उम्दा से उम्दा हथियारों से लैस | ||
हत्यारों की फौज | हत्यारों की फौज | ||
− | तुम्हारी | + | तुम्हारी हिफ़ाज़त में कर दी है खड़ी |
यूँ ही नहीं निकल पड़ा है | यूँ ही नहीं निकल पड़ा है | ||
तुम्हारा अवचेतन | तुम्हारा अवचेतन |
20:16, 18 मई 2009 के समय का अवतरण
</Poem>
कविता हमेशा नहीं होती वक्तव्य
जबकि, वक्तव्य में निकल ही पड़ते हैं विचार
धर्म समाज की ज़रूरत है
मार खाने से ही आता है समझ में,
एक अदला धर्म
एक बदला धर्म
धर्मों में भी धर्म,
भटका चुका विचार ही तो है धर्म
विचार की शान पर ही
बनते हैं संगठन
धर्म बनाता है गिरोह
‘महान विचारक’
संगठन के भीतर भी बना लेते हैं गिरोह
सांगठनिक बुनावट का
ख़ूबसूरत वस्त्र भी
नहीं छुपा पाएगा
नापाक इरादों को,
सांगठनिक कसीदाकारी
करने वाले जुलाहों के
हाथ काट कर ही
बेशक खेला गया हो गिरोहगर्दी का खेल
गिरोह के भीतर ही रह सकते हैं सुरक्षित
गुंडे, हत्यारे और लम्पट ।
गिरोह लम्पटों की ज़रूरत है।
तुम्हारे संस्मरणों में
तुम्हारे पाला बदलने के कारणों को
ढूंढा नहीं जा सकता
किसी उल्लू की आँख से ;
पहाड़ की खोह में
समूचित धूप न पड़ पाने की वज़ह से
बची हुई थोड़ी-सी बर्फ़ की
गढ़ी गयी आकृति; ओम
तुम्हारे भीतर
तमसो मा ज्योतिर्गमय का
नाद उत्पन्न कर रही है,
और प्रार्थना में बुदबुदाते
तुम्हारे होठों पर
फड़-फड़ाकर चिपक गया है तमस
तुम्हारी भोली-भाली अदा है निराली;
जो वर्षों से दबी
तुम्हारे भीतर की घृणा के प्रकटीकरण पर
अपनी नादानी का
झूठा सहारा ले रही है
तुम्हारी तिजोरियाँ
पुरस्कारों से भरी पड़ी हैं
जिनके भार से दबी जा रही हैं
तुम्हारी संवेदनाएँ
बेशक भाषा की जादूगरी का
गजब का करिश्मा करते रहे हो तुम
हाथ की सफ़ाई का
जबरदस्त अभ्यास है तुम्हें
पर घृणित विचारों में लिपटी तुम्हारी भाषा
नहीं कर पा रही है सम्मोहित
तुम सब हत्यारों के सिपहसलार हो,
जो अपनी नाजुक-सी भाषा के कोड़े
हत्यारों के रथ पर जुते घोड़ों को
धीरे-धीरे मारते हो
ताकि उनकी बग्घी को खींचता घोड़ा
दौड़े बहुत-बहुत तेज़
और हत्यारे हत्याओं से फैला दें
इतनी दहश्त
कि हत्यारों का समर्थन करना
तुम्हारी मज़बूरी जान पड़े
अचानक तुम्हारे पाला बदल लेने पर
हकबका कर भी तुम्हारे विरोध की
हिम्मत न जुटा पाए
कोई इक्का-दुक्का बचा हुआ
विरोधी हत्यारों का
निश्चित ही तुम ऐसे सारे महानुभाव
पीठों के पीठ
ज्ञानपीठ हो
बंडियों के नीचे छिपाए हुए
गात पर रगड़ खाते
जनेऊ के लटकते धागे को
छुपाने की अब कोई ज़रूरत नहीं
तुम्हारे ध्वज वाहकों ने
त्रिशूल, बल्लम और नृशंस हत्या के
उम्दा से उम्दा हथियारों से लैस
हत्यारों की फौज
तुम्हारी हिफ़ाज़त में कर दी है खड़ी
यूँ ही नहीं निकल पड़ा है
तुम्हारा अवचेतन
साक्षात्कार, संस्मरण और
तुम्हारे विचारवान लेखों में