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"उसके मसीहा के लिए / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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अजनबी!
 
अजनबी!
  

18:43, 25 मई 2009 का अवतरण

अजनबी!

कभी ज़िन्दगी में अगर तू अकेला हो

और दर्द हद से गुज़र जाए

आंखें तेरी

बात-बेबात रो रो पड़ें

तब कोई अजनबी

तेरी तन्हाई के चांद का नर्म हाला बने

तेरी क़ामत का साया बने

तेरे ज़्ख़्मों पे मरहम रखे

तेरी पलकों से शबनम चुने

तेरे दुख का मसीहा बने


हाला=वॄत्त; क़ामत= देह की गठन