भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया / जिगर मुरादाबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
तौबा को तोड़-ताड़ के थर्रा के पी गया<br><br>
 
तौबा को तोड़-ताड़ के थर्रा के पी गया<br><br>
  
ज़ाहिद ये मेरी शोखी-ए-रिनदाना देखना<br>
+
ज़ाहिद ये मेरी शोखी-ए-रिंदाना देखना<br>
 
रेहमत को बातों-बातों में बहला के पी गया<br><br>
 
रेहमत को बातों-बातों में बहला के पी गया<br><br>
 
   
 
   

03:23, 26 मई 2009 के समय का अवतरण

साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया

बेकैफ़ियों के कैफ़ से घबरा के पी गया
तौबा को तोड़-ताड़ के थर्रा के पी गया

ज़ाहिद ये मेरी शोखी-ए-रिंदाना देखना
रेहमत को बातों-बातों में बहला के पी गया

सरमस्ती-ए-अज़ल मुझे जब याद आ गई
दुनिया-ए-एतबार को ठुकरा के पी गया

आज़ुर्दगी-ए-खा‍तिर-ए-साक़ी को देख कर
मुझको वो शर्म आई के शरमा के पी गया

ऐ रेहमते तमाम मेरी हर ख़ता मुआफ़
मैं इंतेहा-ए-शौक़ में घबरा के पी गया

पीता बग़ैर इज़्न ये कब थी मेरी मजाल
दरपरदा चश्म-ए-यार की शेह पा के पी गया

इस जाने मयकदा की क़सम बारहा जिगर
कुल आलम-ए-बसीत पर मैं छा के पी गया