भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"थे कल जो अपने घर में वो महमाँ कहाँ हैं / ज़फ़र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
जो खो गये हैं या रब वो औसाँ कहाँ हैं <br><br> | जो खो गये हैं या रब वो औसाँ कहाँ हैं <br><br> | ||
− | आँखों में रोते रोते नम भी नहीं अब तो <br> | + | आँखों में रोते-रोते नम भी नहीं अब तो <br> |
थे मौजज़न जो पहले वो तूफ़ाँ कहाँ हैं <br><br> | थे मौजज़न जो पहले वो तूफ़ाँ कहाँ हैं <br><br> | ||
कुछ और ढब अब तो हमें लोग देखते हैं <br> | कुछ और ढब अब तो हमें लोग देखते हैं <br> | ||
पहले जो ऐ "ज़फ़र" थे वो इन्साँ कहाँ हैं | पहले जो ऐ "ज़फ़र" थे वो इन्साँ कहाँ हैं |
00:32, 28 मई 2009 का अवतरण
थे कल जो अपने घर में वो महमाँ कहाँ हैं
जो खो गये हैं या रब वो औसाँ कहाँ हैं
आँखों में रोते-रोते नम भी नहीं अब तो
थे मौजज़न जो पहले वो तूफ़ाँ कहाँ हैं
कुछ और ढब अब तो हमें लोग देखते हैं
पहले जो ऐ "ज़फ़र" थे वो इन्साँ कहाँ हैं