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'''शीर्षक: '''हिन्दी कविता का दुःखआदमखोर<br> '''रचनाकार:''' [[अनिल जनविजयशुभा]]
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अच्छे कवियों को सब हिदी वाले नकारते आदमखोर उठा लेता हैऔर बुरे कवियों के सौ-सौ गुण बघारते छह साल की बच्चीऐसा क्यों लहूलुहान कर देता है, ये बताएँ ज़रा, भाई अनिल जी अच्छे कवि क्यों नहीं कहलाते हैं सलिल जी उसे
क्यों ले-दे कर छपने वाले कवि बने हैं अपना लिंग पोंछता हैक्यों हरी घास को चरने वाले कवि बने हैं और घर पहुँच जाता हैपरमानन्द मुँह हाथ धोता है और नवल सरीखे हिन्दी के लोचे क्यों देश-विदेश में हिन्दी रचना की छवि बने हैं खाना खाता है
क्यों शुक्ला, जोशी, लंठ सरीखे नागर, राठी हिन्दी कविता पर बैठे हैं चढ़ा कर काठी रहता है बिल्कुल शरीफ़ आदमी की तरहपूछ रहे अपने ई-पत्र में सुशील कुमार जी शरीफ़ आदमियों को भी लगता हैकब बदलेगी हिन्दी कविता बिल्कुल शरीफ़ आदमी की यह परिपाटीतरह।
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