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"आरस सोँ रस सोँ पदमाकर / पद्माकर" के अवतरणों में अंतर

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राति की जागी प्रभात उठी अँगरात जँभात लजात लगी हिये ।
 
राति की जागी प्रभात उठी अँगरात जँभात लजात लगी हिये ।
  
'''पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मलहोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
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'''पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
 
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10:42, 3 जून 2009 के समय का अवतरण


आरस सोँ रस सोँ पदमाकर चौँकि परै चख चुँबन के किये ।
पीक भरी पलकैँ झलकैँ अलकैँ छवि छूटि छटा लिये ।
सो मुख भाखि सकै अब को रिसकै कसकै मसकैँ छतियां छिये ।
राति की जागी प्रभात उठी अँगरात जँभात लजात लगी हिये ।

पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।