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23:30, 5 जून 2009 का अवतरण
माँ
वे मधुवांछी
अभिलाषी जन
रोप गए
ईखों की पौधें,
पूरा घिरा
प्राणतल मेरा।
अभ्यासों से
पुनर्जन्म पा-पा
मिट जातीं
ईखों की अजस्र
मृदुधारा को
लपटें
निःशेष करातीं।