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01:27, 6 जून 2009 का अवतरण
दुँहु ओर से फाग मड़ी उमड़ी जहाँ श्री चढ़ि भीर ते भीर भिरी ।
कुच कँचुकी कोर छुये घरकै पजनेस फँदी फरकै ज्योँ चिरी ।
धधकी दै गुलाल की घूँघुरि मेँ धरी गोरी लला मुख मीढ़ी सिरी ।
उझकै झँपै कौँधे कढ़ै तड़िता तड़पै मनौ लाल घटा मे घिरी ।
पजनेस का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।