भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
1,053 bytes added,
20:17, 5 जून 2009
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
<!----BOX CONTENT STARTS------>
'''शीर्षक: '''आदमखोरनिडर औरतें<br>
'''रचनाकार:''' [[शुभा]]
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
आदमखोर उठा लेता हैहम औरतें चिताओं को आग नहीं देतींछह साल की बच्चीक़ब्रों पर मिट्टी नहीं देतींलहूलुहान कर देता है उसेहम औरतें मरे हुओं को भी बहुत समय जीवित देखती हैं
अपना लिंग पोंछता सच तो ये हैहम मौत कोलगभग झूठ मानती हैंऔर घर पहुँच जाता हैबिछुड़ने का दुख हमख़ूब समझती हैंमुँह हाथ धोता है औरबिछुड़े हुओं को हमखाना खाता हैखूब याद रखती हैंवे लगभग सशरीर हमारीदुनियाओं में चलते-फिरते हैं
रहता है बिल्कुल शरीफ़ आदमी हम जन्म देती हैं और इसकोकोई इतना बड़ा काम नहीं मानतींकि हमारी पूजा की तरहजाएशरीफ़ आदमियों ज़ाहिर है जीवन को भी लगता लेकर हम काफ़ी व्यस्त रहती हैंऔर हमारा रोना-गानाबस चलता ही रहता हैबिल्कुल शरीफ़ आदमी हम न तो मोक्ष की तरह।इच्छा कर पाती हैंन बैरागी हो पाती हैंहम नरक का द्वार कही जाती हैं सारे ऋषि-मुनि, पंडित-ज्ञानीसाधु और संत नरक से डरते हैं और हम नरक में जन्म देती हैंइस तरह यह जीवन चलता है
</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader