भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नकली तारों की पुच्छलें / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''नकली तारों की पुच्छलें''' व...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:50, 7 जून 2009 के समय का अवतरण
नकली तारों की पुच्छलें
वह घूमता है
अपनी जेबों में
उपाधियाँ लिए
और कहता है मुझसे
हाँका लगाऊँ मैं।
खरीदारों के बडे़ बाज़ार में
औने-पौने कुछ नहीं बिकता
सिवाय ईमान के।
छपे हुए प्रशस्ति-पत्रों पर
हस्ताक्षर-सा टुच्चा
व्यक्तित्व मेरा
टोकरी से हवा में उड़
चिपक जाए
नकली तारों की पुच्छलें बन
इस तरह
कि धो न पाएँ
आंधियाँ, तूफान, बरखा
उससे पहले
फाड़ देने चाहिएँ
पत्र, न्यौते और
सूची-पत्र
सब।