"हमार कोऊ का करि है ! / प्रतिभा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना }} <poem> हम तो खाइब अम्हाड़ को अचार ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
| पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
चुराय के हँडिया से , | चुराय के हँडिया से , | ||
हमार कोऊ का करि है ! | हमार कोऊ का करि है ! | ||
| − | |||
| − | |||
आपुन सपूत केर भर भर थरिया , | आपुन सपूत केर भर भर थरिया , | ||
| पंक्ति 16: | पंक्ति 14: | ||
तऊ पै कंटरौल हजार ! | तऊ पै कंटरौल हजार ! | ||
हमार कोऊ का करि है ! | हमार कोऊ का करि है ! | ||
| − | |||
| − | |||
थारी में लै-लै बचाय रखि जाइब रे ! | थारी में लै-लै बचाय रखि जाइब रे ! | ||
| पंक्ति 24: | पंक्ति 20: | ||
घिउ डारी दार, रोटी चार ! | घिउ डारी दार, रोटी चार ! | ||
हमार कोऊ का करि है ! | हमार कोऊ का करि है ! | ||
| − | |||
| − | |||
खींच उहै थरिया पटा पे बैठ जइबे , | खींच उहै थरिया पटा पे बैठ जइबे , | ||
| पंक्ति 32: | पंक्ति 26: | ||
सबाद लै-लै खाई घुँघटा मार ! | सबाद लै-लै खाई घुँघटा मार ! | ||
हमार कोऊ का करि है ! | हमार कोऊ का करि है ! | ||
| − | |||
| − | |||
उनका तो देइत गमकौआ सबुनवा , | उनका तो देइत गमकौआ सबुनवा , | ||
| पंक्ति 40: | पंक्ति 32: | ||
नखरा न दिखिबे तुम्हार ! | नखरा न दिखिबे तुम्हार ! | ||
हमार कोऊ का करि है ! | हमार कोऊ का करि है ! | ||
| − | |||
| − | |||
खँजड़ा पे डारि सनलैट ,केर टिकिया , | खँजड़ा पे डारि सनलैट ,केर टिकिया , | ||
| पंक्ति 49: | पंक्ति 39: | ||
बहार ! | बहार ! | ||
हमार कोऊ का करि है ! | हमार कोऊ का करि है ! | ||
| − | |||
| − | |||
खिरकी पे काहे खरी, बंद कर केवरिया, | खिरकी पे काहे खरी, बंद कर केवरिया, | ||
| पंक्ति 58: | पंक्ति 46: | ||
खीसें मति काढ़ ! | खीसें मति काढ़ ! | ||
हमार कोऊ का करि है ! | हमार कोऊ का करि है ! | ||
| − | |||
| − | |||
गाल चाहे फूलें और टोंके दिन रात रहें, | गाल चाहे फूलें और टोंके दिन रात रहें, | ||
| पंक्ति 67: | पंक्ति 53: | ||
हम तो हँसिबे करी मुँह फार | हम तो हँसिबे करी मुँह फार | ||
हमार कोऊ का करि है ! | हमार कोऊ का करि है ! | ||
| − | |||
| − | |||
उनका बिछावन झका-झक्क चद्दर | उनका बिछावन झका-झक्क चद्दर | ||
13:03, 9 जून 2009 का अवतरण
हम तो खाइब अम्हाड़ को अचार ,
चुराय के हँडिया से ,
हमार कोऊ का करि है !
आपुन सपूत केर भर भर थरिया ,
हमका पियाज
-नोन रोटिन पे धरिया !
जेतन मिलि जाय ओही पे संतोस करो
तऊ पै कंटरौल हजार !
हमार कोऊ का करि है !
थारी में लै-लै बचाय रखि जाइब रे !
उनको परोसो हमार काम आइब रे
तीखी तरकारी बताय छोड़ि जाई जबै,
घिउ डारी दार, रोटी चार !
हमार कोऊ का करि है !
खींच उहै थरिया पटा पे बैठ जइबे ,
पियाज हरी मिरच तो आपुनो ही लइबे ,
तीखी तरकारी तो बड़ा मजा आई,
सबाद लै-लै खाई घुँघटा मार !
हमार कोऊ का करि है !
उनका तो देइत गमकौआ सबुनवा ,
सनलैट हमका अउर ऊपर से ठुनकवा
वाही से नहाय लेओ ,बार मींज माटी सों,
नखरा न दिखिबे तुम्हार !
हमार कोऊ का करि है !
खँजड़ा पे डारि सनलैट ,केर टिकिया ,
धोई नहाई घिसि-घिसि गमकौआ,
वाही से धोइ लेई हम चारि कपरा
खुसबू की अइबे
बहार !
हमार कोऊ का करि है !
खिरकी पे काहे खरी, बंद कर केवरिया,
आँखि फारि-फारि मति देख, री बहुरिया ,
बाहिर की हवा तोहे लगे नुसकान करी ,
और कहित
खीसें मति काढ़ !
हमार कोऊ का करि है !
गाल चाहे फूलें और टोंके दिन रात रहें,
रोकें लगावै,
हजार ,चाहे लाख कहे ,
हमार खुस रहिबे , तुम्हार का खरच होत
हम तो हँसिबे करी मुँह फार
हमार कोऊ का करि है !
उनका बिछावन झका-झक्क चद्दर
हमका दै दीन्हा पुरान ,दलिद्दर !
काहे को सोई ,ऊ बेरंग बिछौना पे ,
सासू-जाये का मजेदार !
हमारो कोऊ का करिहै !
