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"इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में / जोश मलीहाबादी" के अवतरणों में अंतर
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कुचल दे हसरतों को बेनियाज़-ए-मुद्द'अ हो जा | कुचल दे हसरतों को बेनियाज़-ए-मुद्द'अ हो जा | ||
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उठा लेती हैं लहरें तहनशीं होता है जब कोई | उठा लेती हैं लहरें तहनशीं होता है जब कोई | ||
उभरना है तो ग़र्क़-ए-बह्र-ए-फ़ना हो जा | उभरना है तो ग़र्क़-ए-बह्र-ए-फ़ना हो जा |
00:13, 10 जून 2009 का अवतरण
इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में
इबादत तो नहीं है इक तरह की वो तिजारत है
जो डर के नार-ए-दोज़ख़ से ख़ुदा का नाम लेते हैं
इबादत क्या वो ख़ाली बुज़दिलाना एक ख़िदमत है
मगर जब शुक्र-ए-ने'मत में जबीं झुकती है बन्दे की
वो सच्ची बन्दगी है इक शरीफ़ाना इत'अत है
कुचल दे हसरतों को बेनियाज़-ए-मुद्द'अ हो जा
ख़ुदी को झाड़ दे दामन से मर्द-ए-बाख़ुदा हो जा
उठा लेती हैं लहरें तहनशीं होता है जब कोई
उभरना है तो ग़र्क़-ए-बह्र-ए-फ़ना हो जा