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सोभत लखि बिधु बढ़त जनु बारिधि बीचि बिलासु।।7।।<br><br>
प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए। भूषन बसन भूरि तिन्ह पाए।।<br>
प्रेम पुलकि तन मन अनुरागीं। मंगल कलस सजन सब लागीं।। १।। <br>
चौकें चारु सुमित्राँ पुरी। मनिमय बिबिध भाँति अति रुरी।।<br>
आनँद मगन राम महतारी। दिए दान बहु बिप्र हँकारी।।२।।<br>
कालि लगन भलि केतिक बारा। पूजिहि बिधि अभिलाषु हमारा।।२।।<br>
कनक सिंघासन सीय समेता। बैठहिं रामु होइ चित चेता।।<br>
सकल कहहिं कब होइहि काली। बिघन काली।बिघन मनावहिं देव कुचाली।।३।।<br>तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा। चोरहि बधावा।चोरहि चंदिनि राति न भावा।।<b>
सारद बोलि बिनय सुर करहीं। बारहिं बार पाय लै परहीं।।४।।<br>
दो0-बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु।<b>
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