"जो कुटिलता से जियेंगे / बालकवि बैरागी" के अवतरणों में अंतर
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− | पद प्रतिष्टा,राजसत्ता | + | पद प्रतिष्टा,राजसत्ता<br /> |
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− | रात दिन आठों प्रहर | + | रात दिन आठों प्रहर<br /> |
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− | इस भयातुर अमर | + | इस भयातुर अमर <br /> |
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जो किसि षड्यंत्र मे | जो किसि षड्यंत्र मे |
16:21, 17 जून 2009 का अवतरण
छीनकर छ्लछंद से
हक पराया मारकर
अम्रित पिया तो क्या पिया ?
हो गये बेशक अमर
जी रहे अम्रित उमर
लेकिन अभय अनमोल
सारा छिन गया ।
देवता तो हो गये पर
क्या हुआ देवत्व का ?
आयुभर चिन्ता करो अब
पद प्रतिष्टा,राजसत्ता
और अपने लोक की !
छिन नहीं जाए सुधा सिंहासनों की
एक हि भय
रात दिन आठों प्रहर
प्राण में बैठा रहे--
इस भयातुर अमर
जीवन का करो क्या ?
जो किसि षड्यंत्र मे छलछंद में शामिल नहीं था पी गया सारा हलाहल हो गया कैसे अमर ? पा गया साम्राज्य ’शिव’- संग्या सहित शिवलोक का -- कर रहा कल्याण सारे विश्व का !
सुर - असुर सब पूजते उसको निरंतर साध्य सबका बन गया कर्म मे कोई कलुष जिसके नहीं है शीश पर नीलाभ नभ खुद छत्र बनकर तन गया !
जो कुटिलता से जियेंगे वे सदा विचलित रहेंगे त्राण-त्राता के लिये मारे फिरेंगे !
हक पराया मारकर छलछंद से छीना हुआ अम्रित अगर मिल भी गया तो आप उसका पान करके उम्र भर फिर क्या करेंगे ?