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"जो कुटिलता से जियेंगे / बालकवि बैरागी" के अवतरणों में अंतर

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16:28, 17 जून 2009 के समय का अवतरण

  
छीनकर छ्लछंद से

हक पराया मारकर

अम्रित पिया तो क्या पिया ?

हो गये बेशक अमर

जी रहे अम्रित उमर

लेकिन अभय अनमोल

सारा छिन गया ।

देवता तो हो गये पर

क्या हुआ देवत्व का ?

आयुभर चिन्ता करो अब

पद प्रतिष्टा,राजसत्ता

और अपने लोक की !

छिन नहीं जाए सुधा सिंहासनों की

एक हि भय

रात दिन आठों प्रहर

प्राण में बैठा रहे--

इस भयातुर अमर

जीवन का करो क्या ?


जो किसि षड्यंत्र मे

छलछंद में शामिल नहीं था

पी गया सारा हलाहल

हो गया कैसे अमर ?

पा गया साम्राज्य

’शिव’- संग्या सहित

शिवलोक का --

कर रहा कल्याण सारे विश्व का !


सुर - असुर सब पूजते

उसको निरंतर

साध्य सबका बन गया

कर्म मे कोई कलुष

जिसके नहीं है

शीश पर नीलाभ नभ

खुद छत्र बनकर तन गया !


जो कुटिलता से जियेंगे

वे सदा विचलित रहेंगे

त्राण-त्राता के लिये

मारे फिरेंगे !


हक पराया मारकर

छलछंद से छीना हुआ

अम्रित अगर मिल भी गया तो

आप उसका पान करके

उम्र भर फिर क्या करेंगे ?