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{{KKSandarbh
|लेखक=हरिवंशराय बच्चन
|पुस्तक=मधुशाला
|प्रकाशक=
|वर्ष=1935
|पृष्ठ=
}}
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,<br>
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।१६।<br><br>
 == धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,<br> ==
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,<br>
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,<br>