भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रेत / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''रेत''' बालू की धारियों का सा...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:42, 19 जून 2009 के समय का अवतरण
रेत
बालू की धारियों का
सारा उन्माद
एकाएक उड़ जाता है
पाँवों की तली से
दरक जाती है लहरें
रेतीली,
छिन-छिन
छिनता है सारा
प्रवाह
धारा-प्रवाह।
धाराएँ रेत की
उडती हैं,
पड़ती हैं
अगले पडा़व पर।
थोडे़-से कण
पाँव के नीचे बची
लहर के,
कैसे सोखेगे
अनढँपी धरती की
आँखों में उभरी
काँटों की सिसकियाँ....?