भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विदा / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''विदा''' आज दादी, चाचियों, बहन...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:59, 19 जून 2009 के समय का अवतरण
विदा
आज दादी, चाचियों, बहना, बुआ ने
चावलों से, धान से,
भर थाल
मेरे सामने ला
कर दिया है,
मुट्ठियाँ भर कर
जरा कुछ जोर से
पीछे बिखेरो
और पीछे मुड़, प्रिये पुत्री!
नहीं देखो,
पिता बोले अलक्षित।
बाँह ऊपर को उठा दोनों
रची मेहंदी हथेली से
हाथ भर-भर दूर तक
छिटका दिया है
कुछ चचेरे औ’ ममेरे वीर मेरे
झोलियों में भर रहे
वे धान-दाने
भीड़ में कुहराम, आँसू, सिसकियाँ हैं
आँसुओं से पाग कर
छितरा दिए दाने पिता!
आँगन तुम्हारे
रोपना मत
सौंप कर
मैं जा रही हूँ...........।