भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छिप के / गुलाम मुर्तुजा राही" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: कवि - गुलाम मुर्तुजा राही छिप के कारोबार करना चाहता है घर को वो बाज़ार क...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=गुलाम मुर्तुजा राही | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
छिप के कारोबार करना चाहता है | छिप के कारोबार करना चाहता है | ||
पंक्ति 13: | पंक्ति 17: | ||
चाहता है वो कि दरिया सूख जाये | चाहता है वो कि दरिया सूख जाये | ||
− | रेत का | + | रेत का व्यापार करना चाहता है । |
पंक्ति 29: | पंक्ति 33: | ||
सरहदों को पार करना चाहता है । | सरहदों को पार करना चाहता है । | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− |
19:26, 23 जून 2009 के समय का अवतरण
छिप के कारोबार करना चाहता है
घर को वो बाज़ार करना चाहता है।
आसमानों के तले रहता है लेकिन
बोझ से इंकार करना चाहता है ।
चाहता है वो कि दरिया सूख जाये
रेत का व्यापार करना चाहता है ।
खींचता रहा है कागज पर लकीरें
जाने क्या तैयार करना चाहता है ।
पीठ दिखलाने का मतलब है कि दुश्मन
घूम कर इक वार करना चाहता है ।
दूर की कौडी उसे लानी है शायद
सरहदों को पार करना चाहता है ।