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"छिप के / गुलाम मुर्तुजा राही" के अवतरणों में अंतर

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कवि - गुलाम मुर्तुजा राही
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सरहदों को पार करना चाहता है ।
 
सरहदों को पार करना चाहता है ।
 
 
 
  प्रेषक - संजीव द्विवेदी -
 

19:26, 23 जून 2009 के समय का अवतरण

छिप के कारोबार करना चाहता है

घर को वो बाज़ार करना चाहता है।


आसमानों के तले रहता है लेकिन

बोझ से इंकार करना चाहता है ।


चाहता है वो कि दरिया सूख जाये

रेत का व्यापार करना चाहता है ।


खींचता रहा है कागज पर लकीरें

जाने क्या तैयार करना चाहता है ।


पीठ दिखलाने का मतलब है कि दुश्मन

घूम कर इक वार करना चाहता है ।


दूर की कौडी उसे लानी है शायद

सरहदों को पार करना चाहता है ।