भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तड़पते हैं न रोते हैं न हम फ़रियाद करते हैं / ख़्वाजा हैदर अली 'आतिश'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
इलाही देखिये किस दिन हमें वो याद करते हैं<br>
 
इलाही देखिये किस दिन हमें वो याद करते हैं<br>
  
शब-ए-फ़ुर्क़त में क्या क्या साँप लहराते हैं सीने पर<br>
+
शब-ए-फ़ुर्क़त में क्या-क्या साँप लहराते हैं सीने पर<br>
 
तुम्हारी काकुल-ए-पेचाँ को जब हम याद करते हैं<br>
 
तुम्हारी काकुल-ए-पेचाँ को जब हम याद करते हैं<br>

01:25, 24 जून 2009 के समय का अवतरण

तड़पते हैं न रोते हैं न हम फ़रियाद करते हैं
सनम की याद में हर-दम ख़ुदा को याद करते हैं

उन्हीं के इश्क़ में हम नाला-ओ-फ़रियाद करते हैं
इलाही देखिये किस दिन हमें वो याद करते हैं

शब-ए-फ़ुर्क़त में क्या-क्या साँप लहराते हैं सीने पर
तुम्हारी काकुल-ए-पेचाँ को जब हम याद करते हैं