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आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,<br>
 
आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,<br>
पर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।<br><br>
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घ्रर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।<br><br>
  
 
एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,<br>
 
एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,<br>

08:00, 5 सितम्बर 2007 का अवतरण

लेखक: दुष्यंत कुमार

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आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
घ्रर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।

एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।

अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह,
यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ के मारे न देख।

वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख।

ये धुंधलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख।

राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई,
राख में चिनगारियां ही देख अंगारे न देख।