भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जाता हुआ साल / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) छो (जाता हुआ साल / अनातोली पारपरा का नाम बदलकर जाता हुआ साल / अनातोली परपरा कर दिया गया है) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:32, 24 जून 2009 का अवतरण
|
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
देश पर चला दी आरी
लूट-खसोट मचा दी भारी
अराजकता फैली चहुँ ओर
महाप्रलय का आया दौर
इस गड़बड़ और तबाही ने जन को बहुत सताया है
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
अपने पास जो कुछ थोड़ा था
पुरखों ने भी जो जोड़ा था
लूट लिया सब इस साल ने
देश में फैले अकाल ने
ठंड, भूख और महाकाल की पड़ी देश पर छाया है
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
भंग हो गई अमन-शान्ति
टूटी सुखी-जीवन की भ्रान्ति
अफ़रा-तफ़री-सी मची हुई है
क्या राह कहीं कोई बची हुई है
बस, जन का अब यही एक सवाल है
क्यों लाल झण्डे का हुआ बुरा हाल है
हँसिया और हथौड़े को भी, देखो, मार भगाया है
इस जाते हुए साल ने मुझे बेहद डराया है
रचनाकाल : 1992