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हो न सके हम
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छोटी सी ख्वाहिश का हिस्सा
 
छोटी सी ख्वाहिश का हिस्सा

19:10, 24 जून 2009 के समय का अवतरण

हो न सके हम

छोटी सी ख्वाहिश का हिस्सा

हो न सके हम बदन उधारे बच्चों जैसा

गर्मी या बारिश का हिस्सा

हुआ न मनुवां

किसी गौर की महफिल का गायक साज़िंदा¸

अपने ही मौरूसी घर का

रहा हमेशा से कारिंदा

दास्तान हो सके न रोचक

याकि लोक में प्रचलित किस्सा


जीवन जीने की कोशिश में

लगा रहा मैं भूखा–प्यासा

होना था कविता सा¸ लेकिन

हो न सका मैं ढंग की भाषा

जनम जनम से

होता आया

इन–उन की ख्वाहिश का हिस्सा


जीवन बांध नहीं पाये हम

मंसूबे ही रहे बांधते¸

खुलकर खेल न पाये बचपन

यूं ही खिचड़ी रहे रांधते

हो न सके

जीवन जीने की

हम आदिम ख्वाहिश का हिस्सा