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"यह कैसा त्योहार / तारा सिंह" के अवतरणों में अंतर
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:लोग घुस आए हैं एक दूजे के घर लेकर तलवार | :लोग घुस आए हैं एक दूजे के घर लेकर तलवार |
21:44, 24 जून 2009 के समय का अवतरण
- यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार
- लोग घुस आए हैं एक दूजे के घर लेकर तलवार
- मजहब के नाम पर हो रहा है मुर्दों का व्यापार
- यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार
- पुजारी बैठा हुआ है घात लगाकर मंदिर में
- मौलवी सेवइयाँ बाँट रहा है विष के प्याले में
- सतश्री अकाल के नारे संग गूँज रही तोप की
- आवाजों के संग गली, घर और गुरुद्वारे में
- घर बना मुर्दों का कब्रगाह , कफन बेच रहा
- दूकानदार मरघट में, यह कैसा संस्कार
- यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार
- करगिल ध्वंस हुआ, गोधरा जला, वतन हुआ बेजार
- सुहागिनों का सुहाग उजड़ा, माँ की गोद सूनी हुई
- बेटी अनाथ हुई, पिता वतन के खातिर खुद
- को कर्म-यग्य की हवन ज्वाला में भस्म कर दिया
- खून से लिपटी, अकथ कहानी, कहती है दीवार
- यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार
- बेटे का शव पिता के कंधे पर है लदा हुआ
- पिता दो कदम चलने से भी लाचार
- माँ की आँखों में रोशनी नहीं, कैसे
- देखेगी पुत्र का यह अन्तिम संस्कार
- यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार
- जो जीवित बचा वह भी मुरझा गया ग्रीष्म की नादानी से
- यह कैसी प्यास जो मिटती नहीं नयन की जलधारों से
- सभी अपनी-अपनी प्यास बुझाते,एक दूजे के सीने पर कर प्रहार
- चतुर्दिक है हाहाकार , यह कैसा हो गया संसार
- यह कैसी होली, कैसी दीवाली, कैसा यह त्योहार