"मधुऋतु ने बहकाया है / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'" के अवतरणों में अंतर
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इतनी बार मुझे मधुऋतु न बहकाया है | इतनी बार मुझे मधुऋतु न बहकाया है | ||
21:55, 24 जून 2009 के समय का अवतरण
इतनी बार मुझे मधुऋतु न बहकाया है
लगने लगा कि जीवन पतझर की छाया है !
तुम कहते हो हँसू खिलखलाऊँ, मुस्काऊँ
फटे चीथड़ों से मुक्ता, मणि, लाल लुटाऊँ
मैंने जो कुछ बरता, सहा और भोगा है
मानस-पट से कैसे उसका चित्र मिटाऊँ
सावन ने मेरे नयनों, को समझाया है
जीवन केवल रुदन, हास्य तो मृगमाया है !
वंशी के स्वर अब तो सिर्फ मर्सिया गाते
पनघट मुझको अब तो केवल प्यास पिलाते
चुम्बकीय आकर्षण ऐसे बदल गये हैं
मंडप धकियाते हैं, मरघट पास बुलाते
मुझ से मेरा ही दर्पण अब शरमाया है
मुँह बिसूरती मुझ पर मेरी ही काया है !
इम्तहान पर इम्तहान होते जाते हैं
धुँधले धरती आसमान होते जाते हैं
जागी आँखों ने ऐसा कुछ देख लिया है
सारे सपने बेजुब़ान होते जाते हैं
मुझे अटपटे प्रश्नों ने यूँ उलझाया है
उत्तर सही एक भी कभी नही पाया है !